लेख-निबंध >> सातवाँ रंग सातवाँ रंगदेवेन्द्र राज अंकुर
|
5 पाठकों को प्रिय 206 पाठक हैं |
‘सातवाँ रंग’ देवेन्द्र राज अंकुर की निबन्ध पुस्तकों की श्रृंखला में सातवीं कड़ी है।
‘सातवाँ रंग’ देवेन्द्र राज अंकुर की निबन्ध पुस्तकों की श्रृंखला में सातवीं कड़ी है। उनके निबन्धों ने हिन्दी थिएटर के सवालों को, पत्र-पत्रिकाओं और फिर पुस्तकों के माध्यम से आम हिन्दी पाठक के सरोकारों से जोड़ने का ऐतिहासिक कार्य किया है। अपनी व्यावहारिक दृष्टि के चलते उनके निबन्धों ने थिएटर-जगत के अध्येताओं को भी सोचने के लिए नई भूमि उपलब्ध कराई है। इससे पहले प्रकाशित छह पुस्तकों की लोकप्रियता ने इस मिथक को भी तोड़ा कि हिन्दी रंगमंच अपने में बन्द कोई दुनिया है।
इसी बहुस्तरीय प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए, ‘सातवाँ रंग’ में संकलित आलेख अपनी विषयगत ‘रेंज’ और वैचारिक गहराई से हमें समकालीन रंग-परिदृश्य का एक आईना उपलब्ध कराते हैं। इस समय के लगभग सभी प्रश्नों का विश्लेषण-मनन करते हुए, विजय तेन्डुलकर और हबीब तनवीर जैसी थिएटर-हस्तियों को स्मरण करते हुए, और साथ में अपने समय के रंग-लेखन से गुजरते हुए यह पुस्तक हमें थिएटर के वर्तमान का एक समूचा खाका उपलब्ध करा देती है।
देवेन्द्र राज अंकुर के दो साक्षात्कार और निर्देशन के रूप में उनकी रचना-प्रक्रिया पर डायरी शैली में एक आलेख इस पुस्तक का विशेष आकर्षण है जिससे पाठक यह बखूबी समझ सकते हैं कि ‘कहानी का रंगमंच’ विधा के अविष्कारक अंकुर जी अपनी टीम से प्रस्तुति की तैयारी कैसे कराते हैं।‘
इसी बहुस्तरीय प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए, ‘सातवाँ रंग’ में संकलित आलेख अपनी विषयगत ‘रेंज’ और वैचारिक गहराई से हमें समकालीन रंग-परिदृश्य का एक आईना उपलब्ध कराते हैं। इस समय के लगभग सभी प्रश्नों का विश्लेषण-मनन करते हुए, विजय तेन्डुलकर और हबीब तनवीर जैसी थिएटर-हस्तियों को स्मरण करते हुए, और साथ में अपने समय के रंग-लेखन से गुजरते हुए यह पुस्तक हमें थिएटर के वर्तमान का एक समूचा खाका उपलब्ध करा देती है।
देवेन्द्र राज अंकुर के दो साक्षात्कार और निर्देशन के रूप में उनकी रचना-प्रक्रिया पर डायरी शैली में एक आलेख इस पुस्तक का विशेष आकर्षण है जिससे पाठक यह बखूबी समझ सकते हैं कि ‘कहानी का रंगमंच’ विधा के अविष्कारक अंकुर जी अपनी टीम से प्रस्तुति की तैयारी कैसे कराते हैं।‘
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book